विधायकों को मिलेगी फ्री इलाज की सुविधा, गोल्डन कार्ड को लेकर बड़ी तैयारी Golden Card Scheme

Golden Card Scheme: उत्तराखंड में गोल्डन कार्ड के माध्यम से कैशलेस इलाज की सुविधा संकट में पड़ गई है. फिलहाल, अस्पतालों का 80 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान लंबित है. जिसके चलते कई निजी अस्पतालों ने इलाज से हाथ खड़े कर दिए हैं. इस समस्या का समाधान निकालने के लिए सरकार अब अंशदान बढ़ाने और अन्य वित्तीय विकल्पों पर विचार कर रही है.

विधायकों और उनके आश्रितों को भी मिलेगा गोल्डन कार्ड

इस बीच, विधायकों और उनके परिवारों को भी इस योजना के तहत कैशलेस इलाज की सुविधा देने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. विधानसभा सचिवालय से विधायकों और उनके आश्रितों का डाटा मांगा गया है. ताकि उनके गोल्डन कार्ड बनाए जा सकें और योजना में उन्हें शामिल किया जा सके.

2021 में हुई थी एसजीएचएस योजना की शुरुआत

राज्य सरकार ने वर्ष 2021 में कर्मचारियों और पेंशनर्स के लिए राज्य सरकार स्वास्थ्य योजना (SGHS) की शुरुआत की थी. इस योजना के तहत कर्मचारियों और पेंशनर्स को असीमित खर्च पर कैशलेस इलाज की सुविधा दी गई थी. इस सुविधा के लिए लाभार्थियों के वेतन और पेंशन से अंशदान की कटौती की जाती है. वर्तमान में लगभग 4.8 लाख गोल्डन कार्ड बनाए जा चुके हैं.

कैसे मिलता है अस्पताल में इलाज?

गोल्डन कार्डधारकों को उनके वेतन पे-बैंड के अनुसार स्वास्थ्य सेवाएं मिलती हैं. इसमें सामान्य, सेमी प्राइवेट, प्राइवेट और डीलक्स श्रेणियों के रूम का आवंटन होता है. हालांकि सरकारी अस्पतालों में अब भी इस स्तर की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पाई हैं. जिसके चलते योजना के तहत लगभग 70 प्रतिशत मरीजों का इलाज निजी अस्पतालों में किया गया है.

उत्तराखंड से बाहर भी मिल रही है सुविधा

गोल्डन कार्ड योजना केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं है. बल्कि देशभर के कई अस्पताल इस योजना में सूचीबद्ध हैं. इससे मरीजों को अपने राज्य से बाहर भी आवश्यक चिकित्सा सुविधा लेने की स्वतंत्रता मिलती है.

विधायकों के लिए योजना को दिया गया नया रूप

पिछले वर्ष ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में हुए विधानसभा सत्र के दौरान विधायकों के वेतन और भत्तों में बढ़ोतरी के साथ ही उनके लिए भी कैशलेस इलाज की सुविधा देने के लिए विधानसभा विविध विधेयक पारित किया गया था. अब इस विधेयक पर अमल करते हुए विधायकों और उनके परिवारों को भी इस योजना में शामिल किया जा रहा है. राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण ने इस संबंध में विधानसभा सचिवालय से आवश्यक डेटा प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

बजट की कमी बनी सबसे बड़ी चुनौती

सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स के लिए शुरू की गई यह योजना फिलहाल बजट संकट से जूझ रही है. मौजूदा स्थिति यह है कि अंशदान के रूप में सरकार को सालाना 120 करोड़ रुपये प्राप्त हो रहे हैं. जबकि इलाज पर होने वाला खर्च 250 करोड़ रुपये से भी अधिक हो चुका है.

समाधान के लिए उठाए जा रहे कदम

बजट की इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है. राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण ने लाभार्थियों का अंशदान बढ़ाने या योजना के लिए अलग से बजट आवंटित करने का प्रस्ताव दिया है.

निजी बीमा कंपनी को देने पर विचार

योजना के संचालन को सुचारू रूप से जारी रखने के लिए विधानसभा सत्र में यह सुझाव भी सामने आया कि योजना का जिम्मा किसी निजी बीमा कंपनी को सौंप दिया जाए. इससे सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स को समय पर इलाज मिल सकेगा और भुगतान प्रक्रिया भी तेजी से हो सकेगी. इस पर शासन ने राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण को कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं.

क्या होगा आगे?

यदि योजना को निजी बीमा कंपनी के हवाले किया जाता है, तो इससे मरीजों को अधिक सुविधाएं मिलने की संभावना है. लेकिन अंशदान बढ़ाने से कर्मचारियों और पेंशनर्स पर वित्तीय बोझ भी बढ़ सकता है. सरकार इस पर विचार-विमर्श कर रही है और जल्द ही इस पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा.

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